Depression/नैराश्य

आज हम depression यानी कि नैराश्य के बारे में कुछ बात करेंगे। अकसर हमने देखा है कि डिप्रेशन को आम आदमी पागल होना कहलाता है,इसलिए वो mental हॉस्पिटल में मरीज को admit करवाने की सोचते है। हालांकि Psychiactric डिप्रेशन का इलाज करते है पर हिंदी में उसका अर्थ होता है दिमाग का डॉक्टर तो हैम डिप्रेशन वाले व्यक्ति को पागल समझ बैठते है और फिर अकसर उन्हें निचले दर्जा से उनसे बात करते है,उनको समझने की बजाय आम आदमी ये सोचता है कि पागलो के दवाखाने मरीज को भेज दिया जाए।
*"आप ही सोचिये क्या ये सही है??"*
"नही ना?" गलती हमारी होती है हैम उन्हें समझ ही नही पाते क्योंकि हैम उनको समझना ही नही चाहते है उनसे कुछ फर्क ही नही पड़ता..
डिप्रेशन के शुरुआती दौर पर उनका खास ध्यान रखा जाए तो बहोत से लोग जल्दी ठीक हो जाते है।डिप्रेशन ऐसी चीज़ है जो ठीक हो सकती है उसके लिए उस मरीज को अकेला न छोड़ना,उनकी परवाह करना,उनको जताना की हैम आपके साथ है ये चीज़े बहोत जरूरी है।
एक बात जरूर याद रखना डिप्रेशन का मरीज कभी भी किसी और को हानि नही पहोचता।
जब तक वो जिंदगी जी सकता है जी रहा होता है। वरना आत्महत्या कर लेता है।और यही तो हैम सबको मिलकर रोकना है। डिप्रैशन के मरीज जब आत्महत्या कर लेते है तब अकसर लोग उनके परिवार को सहानुभूति देने की कोशिश करते है।पर जीते जी अगर उस इंसान को सहानुभुति दे तो वो कभी अकेले महसूस करता ही नही।
अकेले में रोते रहते है,नींद नही आती,सोचते रहते है,किसी से बात करना चाहते है,किसी के कंधे पर सर रख सोना चाहते है लेकिन जैसे ही उनको डिप्रेशन है ये उनके अपनो को बताते है वो उनसे दूर हो जाते है।आखिर कब तक कोई शख्स अकेले जीवन बिताएगा,साथ तो हर कोई चाहता है ना? 
फिर वो ये सोचने लगे जाते है कि जब हमारा कोई है ही नही जीवन में,जब हमारे अपनो के सामने जिक्र करके भी वो तक नही समझ रहे हमे तो क्यों ही जीना है ऐसे जिंदगी।और वो कुछ इस तरह अपने आप को खत्म कर लेते है।
अब इसमें गलती तो उन लोगो की हुई न जो उस वक्त दूर हो गए जब उस इंसान को किसी अपने की सबसे ज्यादा जरूरत थी।उनके अपनोने उनको अकेला छोड़ दिया तो क्या ही करेंगे वो??
गलती उन इंसानो की है जो जानते हुए भी डिप्रेशन वाले लोगो को ऐसे देखते है जैसे कोई सच मे पागल हो। डिप्रेशन यानी नैराश्य/उदासीनता अब से तो कोई पागलो वाली हरकत नही है।ना ही किसी को हानि पहोचते है।उनके मारने के बाद हर कोई कहता है कि ऐसा ही कुछ था तो हमसे बात कर लेते,मारने की क्या जरूरत थी??
मेरा मानना है कि आप ही पूछ लेते तो आज नौबत ही नही आती।नैराश्य के मरीज खुद कभी आके नही कहेंगे अपने दिल मे जो है।वो बस अपनो को कहते है या उनको जताने की कोशिश करते है,उनको पूछना पड़ता है,परवाह करनी पड़ती है तो वो विश्वास रख के बात देते है।लेकिन अगर उन्होंने विश्वास करके आपको बताया है तो उसका ढिंढोरा नही पीटते या फिर उनसे दूर नही होते।वरना उनको आत्महत्या करने के लिए प्रोत्साहन मिल जाता है।और यह हम सबको रोकना ही होगा।
जरूरत है तो बस प्यार की और परवाह की।
धन्यवाद।।

Comments

  1. actually its hard to live in this scenario... sometimes it feels so easy to die but sometimes u have to be practical and just think about ur mother who took pain to bring u...peoples thinks may be world will remember after this step but remember people forget after some mourn, think about the solution of problems rather to be do something hurting.

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